Pran All Dialogues in Hindi / प्राण कृष्ण सिकंद (Pran Krishan Sikand) जिन्हें हिंदी सिनेमा में "प्राण" के नाम से जाना जाता है. Actor Pran ने Hindi cinema में ज्यादातर Villain और Character Actor के तौर पर काम किया है. प्राण ने अपने फिल्मी Career में 1940 से 1947 तक हीरो, 1942 से 1991 तक Villain और 1948 से 2007 तक Supporting और character roles किये है. आज हम आपको बताने जा रहे है Actor Pran Most Famous Dialogues in Hindi.
प्राण के डायलॉग्स - Pran All Dialogues in Hindi
कपडे बदलने से आदमी की असलियत नहीं बदल जाती
हम अपने धंदे में जिस किसीके साथ तालुक रखते है, उसकी अगली, पिछली, साडी ज़िन्दगी का हिसाब किताब अपनी किताब में रख लेते है
नसीब (1981)
आज की दुनिया में अगर ज़िंदा रहना है, तो दुनिया के बटन अपने हाथ में रखने पड़ते है
शराबी (1984)
इस इलाके में नए आये हो साहब ? वरना शेर खान को कौन नहीं जानता
शेर खान आज का काम कल पर नहीं छोड़ता
शेर खान ने शादी नहीं की तो क्या हुआ, लेकिन बारातें बहुत देखी है
शेर खान काले का धन्धा करता है, लेकिन ईमानदारी से
शेर खान खुद आया था खुद चला जायेगा
आज ज़िन्दगी में पहली बार, शेर खान की शेर से टक्कर हुई है
बारह जंगली कुत्ते मिलकर शेर को मार डालते है
हम आया था कर्ज़ा लेने के लिए, पर तुमने शेर खान को खरीद लिया
चिल्लाओ नहीं साहब, गला ख़राब हो जायेगा
जंजीर (1973)
मैं भी पुराना चीड़ी मार हूँ, पर कतरने अच्छी तरह से जानता हूँ
शीश महल (1950)
हुए तुम दोस्त जिसके, उसका दुश्मन आसमान क्यू हो
1942: A Love Story (1994)
ज़ुल्म करने वाला भी पापी और ज़ुल्म सहने वाला भी पापी
एक बार मन को साफ़ कर लो, बार बार स्नान नहीं करना पड़ेगा
भगवान की धरती बहुत बड़ी है और इन्सान के कदम बहुत छोटे
अगर तुम मेरे टुकड़े टुकड़े भी कर दो, फिर भी मेरा हर टुकड़ा हक की आवाज़ देगा
ज़ालिम का ज़ुल्म जान ले सकता है, लेकिन हक की आवाज़ को नहीं दबा सकता
जीवन के साथ इतना प्रेम ना करो, वरना मरते समय बहुत दुःख होगा
कितनी ऊँची बात कही है आपने, मन पवित्र हो गया
ज़ुल्म की टहनी कभी फलती नहीं, नाव कागज़ की सदा चलती नहीं
दर्द-ए-दिल के वास्ते पैदा किया इन्सान को, वरना पूजा के लिए फ़रिश्ते कम ना थे भगवान को
गंगा की सौगंद (1978)
दुनिया में दो चीज़ें ऐसी है जिन्हें कोई भी नहीं छुपा सकता, एक हुस्न और दूसरी दौलत
An Evening In Paris (1967)
वो काली काली बोतलें जो है शराब की, अरे रातें है इन में बंद हमारे शबाब की
झमेला चार दिन का था, हवाली थे मवाली थे, सिकन्दर जब गया दुनिया से, दोनों हाथ खाली थे
बदलकर फकीरों का हम भेस ग़ालिब, अहले-ए-तमाशा के देखते हैं करम
विक्टोरिया न. 203 (1972)
जिस तरह घोडा दबाकर बन्दूक से गोली बाहर निकाल देते है, उसी तरह गलती मनाने वालो के सर पर हाथ फेरकर हम पुरानी बातों को दिल से निकाल देते है
शेरनी (1988)
हमारे रास्तों पर चारों तरफ पेट्रोल ही पेट्रोल बिछा हुआ है, कौन, कब मौके का फायदा उठाकर उसपर जलती हुई माचिस उछाल दे और किस मोड़ पर हमारी ज़िन्दगी का सफ़र ख़तम हो जाये, ये हम भी नहीं जानते
गुरुदेव (1993)
पैसे का कोई रंग नहीं, रूप नहीं कोई धरम नहीं, ईमान नहीं, कोई पुण्य नहीं, पाप नहीं
कसौटी (1974)
खुदा बचाए तेरी मस्त मस्त आँखों से, फ़रिश्ता हो तो बहक जाए, आदमी क्या है
मेरे महबूब (1963)
इन डॉक्टरों के चक्कर भी अजीब होते है, जिनके पास कुछ नहीं होता, उन्हें कहते है फल खाओ, माखन खाओ, बादाम खाओ और जिनके पास सब कुछ होता है, उन्हें कहते है की ये मत खाओ वो मत खाओ
अमीरी गरीबी
दुनिया में हर इन्सान को दो चीज़ की भूख होती है, एक दौलत की और दूसरी मोहब्बत की
हमजोली(1970)
आदमी कितना ही बुरा क्यूँ ना हो, वो कभी ना कभी ज़रूर पछताता है
दो बदन (1966)
ये हिन्दुस्तानी लड़कियों का ख़ास अंदाज़ होता है, ये हाँ भी ना की तरह करती है और ना हाँ की तरह
मेरे जाल में आई हुई चिड़िया उड़ नहीं सकती, क्यूँ की मैं उसके पर क़तर देता हूँ
अब ना ये हाथ छोड़ेंगे, ना मुह मोडेंगे, ना दिल तोड़ेंगे
मैं भी तुम्हारी खूबसूरती की एक ज़माने से पूजा कर रहा था, तुम्हारी सूरत अपनी उमीदों की तस्वीर से मिला मिलाके देख रहा था
रूप तेरा मस्ताना (1972)
इन्सान भले ही नफरत ज़ाहिर करे, लेकिन उसके दिल में प्यार छुपा होता है
जिस तरह सूत और कपास अलग नहीं हो सकते, तन और मन अलग नहीं हो सकते, बाल और खाल अलग नहीं सकते, इसी तरह मेल और फीमेल भी अलग नहीं हो सकते, इन दोनों का मिलाप ही प्रेम और शांति की मंजिल है
जंगल में मंगल (1972)
तलवार का ज़ख्म भर जाता है, लेकिन जुबान का ज़ख्म नहीं भरता
तुमसे अच्छा कौन है (1969)
जिस दिन घर की दीवारों के कान निकल आते है, उस दिन उस घर की बुनियाद में दीमक लग जाती है
शादी करने का सिर्फ एक ही फायदा है, की अगर आदमी मरकर नरक में भी जाए, तो लगता है स्वर्ग आ गया
तुम गरीब की इज्ज़त छीन सकते हो, उसकी किस्मत नहीं
भाग्यवान (1993)
इन्सान सिर्फ एक हद तक बर्दाश करने की ताक़त रखता है और तकलीफ हद से बाहर हो जाये, तो उसका हर उसूल शीशे की तरह टूट टूटकर गिरने लगता है
जोंनी मेरा नाम (1970)
इनकी सुन्दरता की तारीफ करना तो चाँद को आइना दिखाना है
राम और श्याम (1967)
यहाँ सूरज हमारी आज्ञा लेकर निकलता है और चाँद हमारे इशारे से डूबता है, हमारे लिए आने वाले कल और गुज़र जाने वाले कल में कोई फर्क नहीं, दोनों ही हमारे गुलाम है
दोस्ती और वफादारी का सबूत बातों से नहीं, काम से दिया जाता है
आदमी ज़िन्दगी और मौत दोनों से झूठ बोल सकता है, लेकिन अपनी प्रेमिका से नहीं
देवता की महान शक्ति अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करती है
ये गुलिस्तान हमारा (1972)
खून बहाना बहुत आसान है, लेकिन खून को बचाना बहुत मुश्किल है
हिफाज़त (1987)
प्यार में तो बुढा भी जवान लगता है, लड़की शिरीन और लड़का फरहाद लगता है
क़र्ज़ चुकाने वाले की यादाश अक्सर कमज़ोर हो जाती है
मुसलमान के यहाँ परवरिश, हिन्दुओ से दोस्ती और अंग्रेजों के शौंक रहे है मेरे
जो संतो की बात ना माने वो बरसो पछताए, जिस जिस राह से गुज़रे तीस तीस जूते खाए
प्यार मोहब्बत में तो हम तन मन जान लुटाया, धोखा दे दे दोस्त को अब देख कबीरा आया
धमकी और चैलेंज तो डरपोक लोग देते है
जो लड़का लड़की की करे हिफाज़त, उससे शादी की है इजाज़त
क़र्ज़ (1980)
मैं तेरी मौत इतनी खराब कर दूंगा, की तुझे देख कर मौत का फ़रिश्ता भी काँप उठे
ये शहर अब जंगल बन गया है, यहाँ दिन को इन्सान और रात को शैतान घुमते है
नास्तिक (1983)
किसी की शब-ए-वस्ल हसते कटे है, किसी की शब-ए-हिज्र रोते कटे है, हमारी ये शब कैसी है या रब, ना हसते कटे है ना रोते कटे है
बिना मुश्किल में पड़े कामयाबी मिलती भी तो नहीं, मुश्किलें इतनी पड़ी मुझपर की आसान हो गई
चाँदी सोना (1977)
औरत को अपना मन, भक्त को उसका भगवान, गरीब को उसकी आन और अमीर को उसकी शान, बहुत प्यारी होती है
भगवान कुछ भी नहीं एक इन्सान है जो महान है, भक्ति कुछ भी नहीं एक शक्ति है, करम कुछ नहीं एक कर्त्तव्य है, प्रेम कुछ भी नहीं एक आनंद है, ये आनंद अगर तुम्हे प्राप्त करना है तो तुम्हे उससे, मुझसे, हर एक से प्रेम करना होगा
समझते हो की सब समझता हूँ, इससे बढ़कर इन्सान की नासमझी और क्या हो सकती है
क्रोधी (1981)
दुनिया में तुम्हे सब कुछ मिल जायेगा, लेकिन मोहब्बत भरा दिल नहीं मिलेगा
नया अंदाज़ (1956)
मौत का एक वक़्त होता है, ना वो पल भर पहले आ सकती है, ना पल भर बाद
मैं की मैं को छोड़ दे, मैं ना किसी की होवे, जो मर्ज़ी भगवान की, वो तेरे संग सजोये
शास्त्र सिर्फ पढने और सुनने के लिए रह गए है, अमल के लिए जिस धर्म और करम की ज़रुरत है, उसे इन्सान खुद अपने हाथों से बनाता है
तकदीर का बादशाह (1982)
मुझे आज तक किसी का खून करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ी
मजबूर (1974)
अदालत शक पर नहीं, यकीन की बुनियाद पर फैसला करती है
युद्ध (1985)
पुरानी शराब की तरह, पुरानी दोस्ती का भी अजीब नशा है
देस परदेस (1978)
अंजाम उनका वही होगा जो तू चाहता है, लेकिन होगा वैसे जैसे हम चाहते है
आवाज़ तो तेरी एक दिन मैं नीची करूंगा, शेर की तरह गरजने वाला, बिजली की ज़बान बोलेगा
हमारे दिल में छुपे नफरत के अंगारों को और हवा ना दे, वरना तू इस आग में जलकर राख हो जायेगा
बेटी के रिश्ते कांच का खिलौना नहीं होते, जिनसे दिल बहल गया और तोड़कर घर के बाहर फेक दिया
जब हमारी तरह पचपन के हो जाओगे, तो ऐसा बचपन का सवाल नहीं करोगे
सनम बेवफा (1990)
जो जंजीरों में जकड़े होते है वो हमेशा गद्दार नहीं होते, और जो ऊँची कुर्सियों पर बैठे होते है वो हमेशा वफादार नहीं होते
राज तिलक (1984)
कुचल दूंगा, मसल दूंगा, जला दूंगा, लूटा दूंगा, रुलाया मुझको किस्मत ने, मैं दुनिया को रुला दूंगा
सब अपनी सोचते है, सबको ध्यान है अपना, यही है रंग तो पूरा ना होगा एक सपना
क्यूँ मटकती है बहुत, आज तन्हाई खटकती है बहुत
ज़रा ये रात ढलने दे, नशा तेरा उतारूंगा, जवानी भूल जाए इश्क, तुझको ऐसे मारूंगा, अँधेरे में अगर मारा तो कहलाऊंगा मैं बुजदिल, तड़प ले रात रात भर, पहली किरण होगी तेरी कातिल
किस्मत है की जिंदा बच गए प्यारे, ना जाने डाकुओ ने इस जगह कितने जवान मारे
सोचने के वक़्त कहाँ, ये कोई और गुल खिलाएगी, बात जंगले की आग होती है, लाख रोकोगे फ़ैल जाएगी
ना तुमको फिकर, ना भाई को ग़म घराने का, ख्याल आया कभी मेरा घर बसाने का, दिया कहीं मेरा पैगाम, तुमने छेड़ी बात, ज़रा भी की कभी कोशिश, सजे मेरी बारात
जैसे तैसे टालो इसे, लूला लंगड़ा जहा कोई मिल जाये हाथ पीले करो, निकालो इसे
हीर रांझा (1970)
राशन पर भाषण बहुत है, लेकिन भाषण पर राशन कोई नहीं
उपकार (1967)
अगर तुम्हारे माथे की बिंदिया और मांग का सिन्दूर, सुहाग की निशानी नहीं कलंक है तो मिटा दे इसे
तुम उसे अपना समझते हो, जो मदद लेता है, मैं उसे अपना समझता हूँ, जो मदद देता है
पूरब और पश्चिम (1970)
हमारे बिज़नस का एक उसूल है, की रुपया दो तो गिन के दो, रुपया लो तो गिन के लो
चन्द्र मुखी (1993)
जब लोग कामयाबी के घोड़े पर सवार सोने की बनी हुई सड़क पर दौड़ते है, तो वो ये भूल जाते है की ये सड़क जेल की काल कोठरी में ख़तम होती है या फासी के तख्ते पर
कालिया (1981)
जी चाहता है तुझे गंदे कीडे की तरह मसल दूं, मगर मैं अपने हाथ गंदे करना नहीं चाहता
इन्सान अपनी बुराई छोड़ सकता है, लेकिन इन्सान की बदनामी हमेशा उसके साथ रहती है
डॉन (1978)
चाँद को अपनी चांदनी साबित करने के लिए चिरागों की शहादत की ज़रुरत नहीं पड़ती
ज़ख्म देने वाला भी वही है, भरने वाला भी वही है, इन्सान तो सिर्फ मरहम लगा सकता है
सच्चाई अपना सबूत खुद देती है
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